RBI की मौद्रिक नीति

 रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की आर्थिक समीक्षा नीतियों से जुड़े इन शब्दों के बारे में जानिए
1. रेपो रेट
2. रिवर्स रेपो रेट
3. CRR
4. SLR
5. MSF

रेपो रेट-
     रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है.बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिए जरूरत पडने पर केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेते है। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रीपो दर कहते हैं। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को ऋण देते हैं. रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे. जैसे कि होम लोन, व्हीकल लोन
       Repo Rate कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और इसलिए बैंक ब्याज दरों में कमी करते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। रीपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। साफ है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।
       6 जुन 2018 से आरबीआई द्वारा निर्धारित वर्तमान रेपो दर 6.25%  है।

रिवर्स रेपो रेट-
     रिवर्स रेपो  दर रेपो दर से उलटा होता है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है.।कभी कभी बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद  एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रीपो दर कहते हैं।
       रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है। अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी है, तो वह रिवर्स रीपो दर में बढ़ोतरी कर देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकमे उसके पास जमा करा दे।
             6 जुन 2018 से आरबीआई द्वारा निर्धारित वर्तमान रिवर्स रेपो दर 6  है।
     रेपो और रिवर्स रेपो  दरें रिजर्व बैंक के हाथ में नकदी की सप्लाई को तुरंत प्रभावित करने वाले हथियार माने जाते हैं।

CRR- कैश रिजर्व रेश्यो-
       बैंकिंग नियमों के तहत  बैंक को अपनी कुल नकदी का  कुछ निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।
        जब  बाजार से तरलता कम करना चाहता है, तो वह RBI  सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम ब च जाती  है। इसके उलट सीआरआर को घटाने से बाजार में मनी सप्लाई बढ़ जाती है।   सीआरआर से नकदी की सप्लाई पर तुलनात्मक तौर पर ज्यादा समय में असर पड़ता है।
          वर्तमान में CRR 4%  है।

एसएलआर-स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो-
        एसएलआर यानी कि स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो। जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।  कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है या तो कमर्शियल बैंकों को रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार एक निश्चित राशि नकदी, सोना या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बॉन्डों में निवेश करना होता है।जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है।
      आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम बचती है।
    वर्तमान मे SLR 19.5% है।

मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF)-
       आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में एमएसएफ का जिक्र किया था और यह कॉन्सेप्ट 9 मई 2011 को लागू हुआ। इसमें सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसद तक लोन ले सकते हैं। यह दर लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (LAF) रेपो से एक फीसदी ऊपर है।

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